रायगढ़ – अब लोग अपनी निजी दुश्मनी निकालने कानून का सहारा लेने से भी नहीं आ रहे हैं बाज़..बास्केटबॉल कोच के खिलाफ नाबालिग बच्ची से अश्लील हरकत करने का मामला निकला फर्ज़ी…पुलिस चाहें तो अब कर सकती हैं….

रायगढ़ – लोग अब अपनी निजी दुश्मनी निकालने के लिए अब लोग पुलिस और कानून का सहारा ले रहे हैं। पुलिस के पास झूठी शिकायत देकर दुश्मनी निकालने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। ब्यावर सर्किल के हर थाने में साल भर में दर्ज होने वाले कुल मामलों में से लगभग 35 प्रतिशत से अधिक शिकायतें जांच के बाद झूठी पाई गई। हालांकि फर्जी मुकदमा दर्ज कराने पर सजा का प्रावधान है मगर इससे पुलिस को पक्षकार बनना पड़ता है इसलिए पुलिस भी आईपीसी की धारा 182 के तहत ज़्यादातर मामलों में अपराध कायम करने से बचती है।

पुलिस नहीं करती है पैरवी
पुलिस द्वारा धारा 182 के तहत झूठे केस दर्ज कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। नियम है कि कोर्ट में सीधे तौर पर इस धारा के तहत खुद शिकायतकर्ता बनकर पैरवी करनी पड़ती है। बार बार कोर्ट का चक्कर काटना पड़ता है। ऐसे में पुलिस के अधिकारियों का मानना है कि ऐसे मामलों में पैरवी करने से उनकी परेशानी बढ़ जाती है। पहले से ही दर्ज एफआईआर में जांच आदि का काम ठीक समय पर पूरा करने में दिक्कत होती है। अब अगर ऐसे मामलों की भी पैरवी शुरू कर दी गई तो पुलिस के समय का नुकसान होगा।
सजा का है प्रावधान : धारा 182 के तहत सरकारी कर्मचारी को झूठी सूचना या जानकारी देने पर सजा का प्रावधान है। जांच में साबित हो जाता है कि शिकायतकर्ता द्वारा झूठी शिकायत दी गई तो धारा 182 के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई होती है। इसमें 6 महीने की सजा और जुर्माना भी है। धारा 211 के तहत कोर्ट में झूठी गवाही के खिलाफ कोर्ट के आदेश पर कार्रवाई होती है। जिसकी सजा 7 साल से अधिक है।
कम नहीं होती झूठी शिकायतों की संख्या – अभी हालिया एक स्थानीय मामलें में 6 दिवस पूर्व ही एक नाबालिग बच्ची द्वारा अपने ही कोच पर फिटनेस टेस्ट के नाम पर कपड़े उतरवाने का आरोप लगाया गया था जो मामला स्थानीय अखबारों से लेकर वेब न्यूज़ पोर्टल व सोशल मीडिया पर सुर्खियों में रहा। जिसकी वजह से आम जनमानस के एक नैरेटिव भी बनने लगा था कि इस मामलें में भी कथित आरोपी कोच व उनकी महिला सहयोगी गुनाहगार हैं।


अब जबकि मामलें में कथित पीड़िता व उसके पिता द्वारा पुलिस में शिकायत देने के पूरे 5 दिन बाद बकायदा शपथपत्र प्रस्तुत कर यह लिखित बयान दिया गया है कि किसी अन्य के द्वारा उनकी नाबालिग बेटी को बहला फुसलाकर कर झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी और इस मामलें ने कोच सहित जिस महिला पर आरोप लगाया गया था वो बेबुनियाद और झूठा था तो यह मामला अब स्वतः ही खत्म हो जाता हैं लेकिन इस मामलें ने एक बार फिर से हमारी पुलिसिया व कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है कि क्या ऐसे किसी भी बेबुनियाद और झूठे मामलों में किसी व्यक्ति को फंसाकर उसकी सामाजिक व चारित्रिक हत्या आसानी से आगे भी की जाती रहेगी हैं ?? या फिर पुलिस ऐसे झूठी शिकायत करने अथवा करवाने वालों के खिलाफ भी कानून सम्मत कार्यवाही कर उन्हें सबक भी सिखा सकती हैं..??