
रायगढ़ – इन दिनों समूचा छत्तीसगढ़ राज्य, मुख्यमंत्री की कुर्सी के ढाई-ढाई साल के फार्मूले की सियासी आग में जल रहा है पर अब इसकी आंच छोटे कार्यकर्ताओ तक पहुंचने लगी है। स्थानीय राजनीतिक सूत्रों की मानें तो इस लपट का शिकार जिले के कद्दावर कांग्रेसी नेता व पूर्व जिला पंचायत सदस्य अशोक अग्रवाल को होना पड़ा है।

सिंहदेव के बेहद करीबी मानें जाने वाले अशोक अग्रवाल को स्थानीय विधायक पर टिप्पणी करने की वजह से जिला कांग्रेस कमेटी ने संगठन से निष्काषित कर दिया हैं। लैलूंगा विधानसभा सहित पूरे जिले में अशोक अग्रवाल अपनी सधी हुई सियासी बयानबाज़ी व बेबाक टिप्पणी के लिए पहचाने जाते है यही वजह भी है कि वो बीतें एक दशक से जिला कांग्रेस में जिला प्रवक्ता के अहम पद पर रहकर अपनी पार्टीगत जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाहन भी कर रहे थे। उनका स्थानीय घर रायगढ विधानसभा क्षेत्र में होने की वजह से उनका रायगढ विधानसभा मे भी खासा प्रभाव हैं जिला पंचायत का चुनाव जीत चुके अशोक अग्रवाल ऐसी मुक्कमल तोप के रूप में जिला कांग्रेस में स्थापित थे जिन्हें स्थानीय भाजपा द्वारा मीडिया अथवा सोशल मीडिया पर कांग्रेस के खिलाफ दिए गए हर सियासी बयानबाज़ी का मुंहतोड़ जवाब माना जाता रहा है जिनके समक्ष भाजपा के सारे धुरंधर समर्पण की मुद्रा में ही नज़र आते रहें हैं।


यहीं नहीं अशोक अग्रवाल ने भाजपा के 15 सालो के सत्ता के दौरान भी पूरी दमदारी से विपक्ष को जिंदा रखा था। विपक्ष की भूमिका के दौरान भूपेश बघेल व टीएस सिंहदेव के कदम से कदम मिलाकर चलने वाले अशोक अग्रवाल सत्ता आते ही हाशिये पर डाल दिये गए। सोशल मंच पर अशोक अग्रवाल ने सांकेतिक रूप ने विधायक को निकम्मा बताया , यह बात भूपेश के करीबी विधायक को नागवार गुजरी और उन्हें कारण बताओ नोटिस के जरिये पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया।

पार्टी से जुड़े सूत्र बताते है कि अशोक अग्रवाल को सिंहदेव के करीबी होने की सजा मिली है। सत्ता आने के पहले रायगढ़ जिला, टीएस सिंहदेव के प्रभार में था टिकट दिलवाने से लेकर चुनाव जितवाने मे टीएस सिंहदेव की व्यूहरचना ही काम आई थी। यहाँ तक कि पार्टी को चुनाव हेतु आवश्यक फंड भी उपलब्ध कराया गया था काँग्रेस की चमकीली जीत में रायगढ़ जिले का अहम योगदान है। जिले की सभी पाँच सीटों में काँग्रेस के विधायक है।

सत्ता बदली औऱ बदली परिस्थितियों के मद्देनजर भूपेश मुख्यमंत्री बने। ढाई साल तक भूपेश के करीबी सत्ता होने के बावजूद वनवास काटते रहे। ढाई ढाई साल के विवाद में जिले के तीन विधायक खुलकर भूपेश के साथ नजर आए वही जिलें के एक कद्दावर विधायक ने ढाई ढाई साल के विवाद से दूरी बनाकर खामोशी की चादर ओढ़ ली। सूत्र बताते है कि सोशल मंच पर भूपेश के करीबी विधायक को निकम्मा बतायें जाने के अलावा टीएस सिंहदेव के पक्ष पोस्ट किए जाने की वजह से अशोक अग्रवाल को सिंहदेव के करीबी होने की सजा मिली। उन्हें नसीहत देने की बजाय बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

जिले के सभी विधानसभा मे जोगी समर्थको की वापसी हो गई हैं और अशोक अग्रवाल जैसे पराक्रमी व ईमानदार काँग्रेसी नेताओ को निष्काषित किया जा रहा हैं लाज़िमी हैं कि इसका असर आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में जिले की सभी 5 विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिल सकता हैं वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दूरदर्शिता का अभाव झेल रही स्थानीय भाजपा इस मौके की इंतजार मे बैठी है कि किसी तरह अशोक अग्रवाल का भाजपा प्रवेश हो जाये लेकिन अशोक अग्रवाल के समर्थकों का दावा है कि उनके नेता का तन-मन व प्राण कांग्रेस में बसता है। अशोक अग्रवाल जैसे बेबाक नेता के बयानों में हकीकत तलाशने की बजाय उनका निलंबन पार्टी के लिए मुसीबत का पहाड़ खड़ा कर सकता है।

