
रायगढ़ – बीतें दो दिनों से पूरे शहर के सियासी गलियारों सहित आम जनता के बीच सिर्फ एक ही बात की चर्चा हो रही हैं कि निगम परिसर में सभापति जयंत ठेठवार के केबिन के भीतर महिला कॉंग्रेस जिलाध्यक्ष श्रीमती बरखा सिंह और कॉंग्रेस की ही महिला पार्षद संजना शर्मा ने आपस में जिस अंदाज में एक दूसरे को बेहद अश्लील गालियाँ दी गयी और दोनों कांग्रेसी नेत्रियों के झूमाझटकी हुई, वो न सिर्फ रायगढ़ काँग्रेस के लिहाज से बेहद शर्मनाक रहा बल्कि इस घटना से पूरे शहर की गरिमा भी धूमिल हुई हैं। इस घटना को लेकर स्थानीय सोशल मीडिया एक्टिविस्ट सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लगातार यूपी कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा यूपी चुनाव के मद्देनजर दिये गए नारे “मैं लड़की हूँ और लड़ भी सकती हूँ” की पैरोडी बनाकर स्थानीय कॉंग्रेस पर लगातार चुटकीले अंदाज़ में तंज कसते नज़र आ रहे हैं। सही भी हैं क्योंकि इस घटना से न सिर्फ स्थानीय कांग्रेस संगठन बल्कि कांग्रेस से जुड़े जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला, स्थानीय विधायक प्रकाश नायक, जिलें के कद्दावर मंत्री व खरसिया विधायक उमेश पटेल, निगम महापौर श्रीमती जानकी काटजू सहित सभापति जयंत ठेठवार की भी राजनीतिक व सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी गहरा आघात पहुँचाया हैं जिससे पूरे जिले सहित प्रदेश भर में रायगढ़ कॉंग्रेस की फज़ीहत हो रही हैं।

इस घटना के बाद रायगढ़ की आम जनता हो या स्थानीय मीडिया या फिर स्थानीय राजनीतिक समीक्षक हो, सभी की राय कमोबेश एक ही नज़र आ रही हैं कि घटना का प्रथम पहलू जो सभापति जयंत ठेठवार के केबिन में दोनों काँग्रेसी नेत्रियों के बीच हुए झूमाझटकी व अश्लील गालीगलौज के वीडियो के रूप में सामने आ रहा है वो यूपी कॉंग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा दिये गए नारे “मैं लड़की हूँ और लड़ भी सकती हूँ” का विकृत स्वरूप मात्र है जबकि असल में रायगढ़ कॉंग्रेस की राजनीतिक व सामाजिक प्रतिष्ठा का बुरी तरह से छीछालेदर करने वाले इस पूरी घटना का भी एक दूसरा अदृश्य पहलू और भी हो सकता हैं और संभवतः इस अदृश्य पहलू को अगर तथ्यों व तर्कों की कसौटी पर कसा जाए तो हो सकता हैं कि वर्तमान में कॉंग्रेस के लिए खलनायिका की भूमिका में नज़र आ रही दोनों नेत्रियां महज एक मेहमान कलाकार के किरदार तक ही सीमित नज़र आये और पूरी घटना का असल स्क्रिप्ट राइटर कोई और निकलें, जिसने बड़ी ही राजनीतिक होशियारी व कुटिलता के साथ इस घटना के ताने-बाने को बुना हो, ताकि घटना का एक ही पहलू लोगों के सामने पहुँचे, जिससे सामने वाले कथित स्क्रिप्ट राइटर की गुप्त राजनीतिक कु-मंशा की पूर्ति हो सकें।

अगर स्थानीय राजनीतिक समीक्षिकों व सोशल मीडिया एक्टिविस्टों की मानें तो जिस तरीके से सभापति महोदय के केबिन की भीतर दो काँग्रेस महिला नेत्रियों के मध्य हुए झूमाझटकी व बेहद फूहड़ व अश्लील गालीगलौज का वीडियो वायरल हुआ है वो प्रथम दृष्टया ही संदेहास्पद व प्रायोजित नज़र आ रहा है क्योंकि उक्त वीडियो में सिर्फ और सिर्फ एक तरफ की ही प्रतिक्रिया दिखाई गई हैं और दूसरे प्रत्यक्ष रूप से शामिल पक्ष को जानबूझकर वीडियो से बाहर रखा गया है।
वहीं अब इस बात पर भी सवालिया निशान उठना अब लाज़िमी हो गया है कि जो लड़ाई वार्ड नं 26-27 के बेज़ा अतिक्रमण से जुड़ी थी जिसकी सर्वप्रथम शिकायत क्षेत्र के दोनों काँग्रेसी पार्षदों के द्वारा ही निगम में की गयी थी जिसमें उक्त महिला पार्षद की भी बराबर भूमिका थी जिसमें बाद में निगम से जुड़े भाजपाई पार्षदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी अपनी लिखित शिकायत निगम आयुक्त को सौंपी थी जिसके दो से तीन दिनों के भीतर से वहाँ निगम के तोड़ू अमले ने अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की।
अब ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि जिस बेज़ा निर्माण को लेकर क्षेत्र की महिला कॉंग्रेस पार्षद संजना शर्मा द्वारा स्वयं शिकायत की गई थी उसकी बेदख़ली की कार्यवाही के दौरान फिर वो अतिक्रमण स्थल पर निगम व प्रशासन की बेदख़ली कार्यवाही को लेकर वहां मौजूद निगम व प्रशासनिक अमले से सवाल जवाब क्यूँ किया गया और इस दौरान अपनी ही पार्टी की महिला जिलाध्यक्ष के निर्माणाधीन मकान पर कार्यवाही करने क्यूँ कहा गया जबकि वह स्थल उक्त अतिक्रमण स्थल से संबंधित ही नहीं था। फिर निगम व प्रशासन के तोड़ू दस्ते को क्यूँ अपनी ही पार्टी के महिला जिलाध्यक्ष के उक्त निर्माणाधीन मकान की तरफ परोक्ष रूप से मोटिवेट कर भेजा गया..? मतलब जिस बेज़ा कब्ज़ा की शिकायत स्वयं द्वारा दी गई हो फिर इसकी बेदख़ली की कार्यवाही के दौरान नेतागिरी क्यूँ की गई…?
बाद में दोनों नेत्रियों के बीच विवाद बढ़ने पर आखिर किसने और क्यूँ निगम सभापति जयंत ठेठवार को ही मोबाइल शिकायत या जानकारी दी जबकि पार्टी से जुड़े दो नेत्रियों के बीच हुए विवाद में अगर प्रोटोकॉल की बात की जाये तो सर्वप्रथम उक्त विवाद की जानकारी जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला से की जानी चाहिए थी जो कि इस मामलें में नहीं किया गया।
फिर सबसे बड़ा व अहम सवाल तो यह भी उठना लाज़िमी ही हैं कि उक्त महिला पार्षद के तुनक मिजाज़ होने व दोनों नेत्रियों के बीच पार्षद चुनाव के दौरान से ही चली आ रहें शीतयुद्ध की पूरी जानकारी होने के बावजूद भी तत्काल में ही दोनों महिला नेत्री निगम स्थित सभापति के केबिन में स्वयं से पहुंची थी अथवा उन्हें वहाँ आमद देने के लिए परोक्ष संदेश भेजा गया था बाद में केबिन के भीतर जो विवाद हुआ उसका सिर्फ एक खास एंगल के साथ वीडियो किसने बनाया और वायरल किया, जबकि केबिन में उस वक्त 3-5 काँग्रेसी पार्षदों की ही मौजूदगी की जानकारी स्थानीय मीडिया में है ऐसे में यह कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा कि इस घटना की पूरी स्क्रिप्ट व निर्देशन राजनीति की बेहद सूक्ष्म समझ रखने वाले किसी कांग्रेसी नेता ने ही रची हो, ताकि अपने गुप्त राजनीतिक एजेंडे की पूर्ति कर सकें।
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह मामला जितना सीधा सपाट नज़र आ रहा है दरअसल भीतर से उतना ही उलझा हुआ है जिसमें संलिप्त दोनों नेत्रियां महज कठपुतली की तरह मेहमान कलाकार की भूमिका में रही हो और निर्देशन व फिल्मांकन किसी शातिर मंझे हुए नेता ने “मैं लड़का हूँ और लड़वा भी सकता हूँ” की पटकथा की तर्ज़ पर किसी काँग्रेसी शकुनि टाइप नेता ने ही पर्दे के पीछे से अंजाम दिया हो..??
बहरहाल..इस पूरी घटना से स्थानीय स्तर पर कांग्रेस की जितनी फज़ीहत व छीछालेदर हुई हैं इससे पहले कभी भी नहीं हुई थी। वही अब कॉंग्रेस जिला आलाकमान, स्थानीय मंत्री व विधायक को ही घटना से जुड़े तमाम पहलुओं व तथ्यों का विश्लेषण व जाँच करनी की जरूरत है ताकि जो निर्णय लिया जाए उससे किसी निरापद “बलि के बकरी” की शहादत न हो जाये। और साथ ही इस पहलू पर भी विशेष नज़र रखने की जरूरत होगी कि इस पूरे एपिसोड से सर्वाधिक सियासी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष लाभ किस नेता या उससे जुड़े गुट विशेष को मिल सकता हैं..? बाकी इतना तो तय है कि इस घटना से स्थानीय मंत्री व स्थानीय विधायक सहित रायगढ़ कॉंग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है।
नोट – हमारा यह लेख पूरी तरह से परिस्थितिगत नज़र आ रहें तथ्यों व घटनाक्रम से जुड़े अनसुलझे सवालों पर आधारित हैं जिसमे हम किसी भी व्यक्तिविशेष की परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष संलिप्तता को लेकर कोई प्रामाणिक दावा नहीं करते हैं।

