राष्ट्रीय

तालाबों के संरक्षण का मामला : जब माननीय सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश बन गया शासनादेश… रायगढ़ के ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत 8 एकड़ के तालाब भूमि का किया गया व्यवसायिक व्यपवर्तन…

हाईकोर्ट में कल दायर की जायेगी जनहित याचिका..

नई दिल्ली (जेएनएन)। जल संरक्षण के लिए जलाशयों को बचाने के लिए शासन-प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। सार्वजनिक उपयोग की जमीन पर अवैध कब्जे के मामले जिस गति से बढ़ रहे थे, उससे तालाबों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल थे। इन सब के बीच सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला शासनादेश बन गया। इसके तहत उत्तर प्रदेश में हजारों तालाबों को अतिक्रमण से मुक्त कराकर जल संरक्षण के क्षेत्र में विशेष कार्य किया गया।

यह था मामला है

सिविल अपील संख्या- 4787/2001, हिंचलाल तिवारी बनाम कमलादेवी, ग्राम उगापुर, तालुका आसगांव, जिला संतरविदास नगर, उत्तर प्रदेश के मामले में तालाब को सार्वजनिक उपयोग की भूमि के तहत समतलीकरण कर यह करार दिया गया था कि वह अब तालाब के रूप में उपयोग में नहीं है। तालाब की ऐसी भूमि को आवासीय प्रयोजन हेतु आवंटन कर दिया गया था। इस मामले में 25 जुलाई 2001 को पारित हुए आदेश में कोर्ट ने कहा कि जंगल, तालाब, पोखर, पठार तथा पहाड आदि को समाज के लिए बहुमूल्य मानते हुए इनके अनुरक्षण को पर्यावरणीय संतुलन हेतु जरूरी बताया है। निर्देश है कि तालाबों को ध्यान देकर तालाब के रूप में ही बनाये रखना चाहिए। उनका विकास एवम् सुन्दरीकरण किया जाना चाहिए, जिससे जनता उसका उपयोग कर सके। आदेश है कि तालाबों के समतलीकरण के परिणामस्वरूप किए गए आवासीय पट्टों को निरस्त किए जाए। आवंटी स्वयं निर्मित भवन को 6 माह के भीतर ध्वस्त कर तालाब की भूमि का कब्जा ग्रामसभा को लौटाएं।

यदि वे स्वयं ऐसा नहीं करता है , तो प्रशासन इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित कराये। तालाब, पोखरे के अनुरक्षण केे संबंध में सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश का संज्ञान लेते हुए परिषद ने नये सिरे से 8 अक्तूबर को एक महत्वपूर्ण शासनादेश जारी किया। आवासीय प्रयोजन के लिए आरक्षित भूमि को छोडकर किसी अन्य सार्वजनिक प्रयोजन की आरक्षित भूमि को आवासीय प्रयोजन हेतु आबादी में परिवर्तित किया जाना अत्यन्त आपत्तिजनक है।

वैसे यहां यह भी बताना लाज़िमी होगा कि आखिर क्यूं इस प्रकरण का हम जिक्र यहां कर रहे हैं क्योंकि हमारे रायगढ़ जिले के पुसौर तहसील में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां सालों से निस्तारी के लिए उपयोग में आ रहें एक तालाब को स्थानीय पटवारी और राजस्व निरीक्षक के जांच प्रतिवेदन के आधार पर राजस्व मंडल बिलासपुर द्वारा यह बोलकर व्यवसायिक व्यपवर्तन हेतु वर्ष 2014 में अनुमति प्रदान करने तत्कालीन एसडीएम को आदेशित किया गया था कि उक्त तालाब का वर्तमान में निस्तारी हेतु उपयोग नही किया जा रहा है जबकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पहाड़ भूमि, पठार भूमि और तालाब अथवा झील भूमि को लेकर स्पष्ट आदेश दिया है कि पर्यावरणीय संतुलन हेतु इन्हें हर स्थिति में संरक्षित रखना नितांत आवश्यक है।

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