रायगढ़ – खदानों की जनसुनवाई : भाजपा जिलाध्यक्ष के भाई के मालिकाना हक वाली खदान सहित अन्य दो खदानों के खुलने से स्थानीय जनाबादी में गंभीर बीमारियों के संक्रमण का खतरा बढ़ने की आशंका..विशेषज्ञों का कहना कि लोगों की औसत आयु तक हो सकती हैं कम…

सारंगढ के गुडेली में होने वाली जनसुनवाई को लेकर अब कई तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं। स्थानीय बाशिंदों की माने तो यह समूचा क्षेत्र पहले से ही क्षेत्र में संचालित दर्ज़नों क्रशर व अन्य संचालित डोलोमाइट पत्थर खदानों की वजह से वायु प्रदूषण की भारी मार झेल रहा है और ऐसे में इस क्षेत्र में तीन और खदानों के खुल जाने से स्थानीय लोगों का जीना पूरी तरह मुहाल हो जायेगा।
पर्यावरण से जुड़े जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र विशेष में लाइम स्टोन की तीन और खदाने खुलने से स्थानीय स्तर पर प्रदूषण का व्यापक असर पड़ने वाला है क्योंकि इन खदानों से यहाँ की आबोहवा में पार्टिकुलेट मैटर्स (PM-pollutants) आसानी से घुल जाते है और श्वास लेने पर हवा के साथ सीधे ये श्वास नली से होते हुए फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं जिसकी वजह से इस प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से श्वसन संबंधित सामान्य से जटिल बीमारियों के साथ साथ दिल व प्रतिरक्षा तंत्र से जुड़ी बीमारी होने की संभावना 300-400% तक बढ़ जाती हैं। स्थानीय निवासियों की मानें तो हालिया कुछ सालों में क्षेत्र में श्वसन संबंधी बीमारी से ग्रसित मरीजों की तादाद बढ़ रही हैं जिसमें से कुछेक मामलों में गंभीर एलर्जी जैसे परिणाम भी देखने को मिल चुकें हैं बावजूद इसके आज पर्यंत जिला पर्यावरण विभाग द्वारा कभी भी इन खदानों के खिलाफ कोई ठोस कानूनी कार्यवाही नहीं की गयी हैं जिसको लेकर भी अब स्थानीय लोगों के मन मे काफी आक्रोश व्याप्त है।
वहीं स्थानीय निवासियों का तो यह भी कहना है कि रायगढ़ मुख्यालय में बैठकर भाजपा जिलाध्यक्ष व उनके कार्यकर्ता बढ़ते प्रदूषण का विरोध करते है पर जब अपने भाई व उनके व्यावसायिक मित्रों के मालिकाना हक वाले उद्योगों व खदानों की जनसुनवाई की बारी आती हैं तो पूरी रायगढ़ भाजपा मौन हो जाती हैं।
वहीं अगर हम स्थानीय पर्यावरणविदों की बात करें तो उनका तो यह भी कहना हैं कि इस क्षेत्र की आबोहवा अब बुरी तरह से पार्टिकुलेट-मैटर्स प्रदूषक की चपेट में आ चुका है जिसका भयानक दूरगामी परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकता हैं। PM-pollutants के सामान्य से अधिक मात्रा का स्थायी रूप से हवा में मौजूद होना क्षेत्र की जनाबादी के औसत आयु तक को कम कर सकता हैं तो दूसरी तरफ लाइम स्टोन यानि चूना पत्थर के उत्खनन से भूजल की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है जिससे तलछट और आकस्मिक रिसाव सीधे एक्वीफर्स में बढ़ जाते हैं। इन दूषित पदार्थों में खनन से भूजल में प्रदूषक अन्य प्रकार की चट्टानों की तुलना में चूना पत्थर के माध्यम से तेजी से आगे बढ़ते हैं यही वजह है कि विशेषज्ञ कार्स्ट क्षेत्रों में खदान संचालन में विशेष रूप से सावधान रहने की बात कही जाती है। चूना पत्थर उत्खनन एक महत्वपूर्ण भूजल भंडारण क्षेत्र को भी हटा देता है। भूमिगत खदानों से पानी निकालने से भूजल प्रवाह की दिशा और मात्रा में भी परिवर्तन होता है और भूजल की गुणवत्ता पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है और यह दीर्घकालिक प्रदूषण बना रह सकता है। इसकी चपेट में आने से कई तरह की गंभीर बीमारियां अपना पैर पसारने लगेगी।
बताया जाता है कि चूना पत्थर की धूल खनन स्थल से काफी दूर तक के क्षेत्र को प्रभावित करती है यानि चूना पत्थर खदान के आसपास के गांव बुरी तरह प्रभावित होने वाले हैं। ऐसे गुडेली में जगदम्बा स्पंज के लाइम स्टोन की माइन शिव कुमार अग्रवाल के 2.926 हे में प्रतिवर्ष 1 लाख 10 हजार 829.38 टन का खनन होना है। दूसरा नितिन सिंघल का लाइम स्टोन खदान सबसे बड़ा होगा 3. 113 हे से हर साल 15506125 टन होगा। तीसरा नाम तुलसी बसन्त के लाइम स्टोन खदान का है जो क्षेत्र का एक चर्चित चेहरा है इसका खदान 2.836 हे. में हर साल 170038 टन का उत्खनन होगा। तब क्षेत्र में प्रदूषण का आलम क्या होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
रायगढ़ पर्यावरण मित्र ने गुडेली क्षेत्र में चुना पत्थर खदान की होने वाली जनसुनवाई को लेकर कहा कि क्षेत्र के ग्रामीणों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है यदि यहां चुना पत्थर खदान खोला जाता है तो क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ना तय है।
रायगढ़ पर्यावरण मित्र के बजरंग अग्रवाल ने कहा कि तीनों खदान के ईआईए रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा और इसके बाद जरूरत पड़ी तो एनजीटी में इसकी भी फाइल प्रस्तुत की जाएगी और खदान को बंद करवाने के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि किसी भी हाल में अब पर्यावण प्रदूषण बढ़ाने वाले खदान उद्योगों पर नरमी नहीं बरती जाएगी।
क्षेत्र में पहले ही खनिज विभाग की अकर्मण्यता की वजह से कई बड़े बड़े खदान जिसमे से डोलोमाइट पत्थर निकलने के बाद आज जानलेवा बने हुए हैं। पत्थर उत्खनन के बाद क्षेत्र में कई बड़े बड़े गहरे जानलेवा खाई रुपी खदान है जिसमे फ्लाई ऐश से फिलिंग होना था जो आज तक नही हो सकी है।