जीवन को अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले आध्यात्मिक गुरु – बाबा प्रियदर्शी राम

गुरुपूर्णिमा पर विशेष
रायगढ़ – इस भौतिक संसार मे मनुष्य जीवन का लक्ष्य उच्च शिक्षा हासिल कर व्यापार डॉक्टर इंजीनियर वकील जज बनकर धन कमाना होता है l बच्चे के जन्म के साथ ही माता पिता योग्यता व क्षमता के अनुसार बच्चे को अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में यथा संभव मदद भी करते है। अधिकांशतः सफल भी होते है जो सफल नही हो पाते वो भगवान माता पिता भाग्य या परिस्थिति को दोषी मानकर स्वयं को अनवरत प्रयास की प्रक्रिया से दूर कर लेते है। बाबा प्रियदर्शी राम जी ने समाज को इस सच्चाई से अवगत कराया कि जीवन की सफलता को केवल धन संपत्ति व सुख संपति की मात्रा से नही आंका जा सकता हैं।
सफलता का असल मापदंड यह है कि हर सफल मनुष्य के जीवन सफर में संपर्क में रहने वाले कितने व्यक्ति लाभान्वित है और कितने व्यक्ति सफल व्यक्ति के आचरण कर्म से प्रताड़ित या परेशान है । मानव जन्म कर्मो के लेखा जोखा के साथ शुरू हो होता है और कर्मो के लेखा जोखा के साथ ही उसका अंत होता है। मानव का शरीर मंदिर है जहाँ आत्मा भगवान के रूप में स्थापित होती है। परमात्मा के अंश के रूप में स्थापित हर आत्मा ज्ञान बुद्धि शक्ति ओज तेज क्षमा प्रेम प्यार से परिपूर्ण होती है। आत्मा जैसे ही भौतिक दुनिया के लोभ मोह माया ईर्ष्या अहंकार अज्ञानता के सम्पर्क में आती है अपने वास्तिवक स्वरूप् को भूल बैठती है। परमात्मा ज्ञान प्रेम क्षमा शक्ति बुद्धि ओज तेज धैर्य का महासागर है l सफल मानव भी अज्ञानता की वजह से परमात्मा से सुख शांति संतान दौलत की चाह में लोभ मोह माया के दलदल में फंस जाता है और जन्म जन्मांतर तक फँस कर रह जाता है।
बाबा प्रियदर्शी ने समाज के सफल लोगो को यह बताया कि कुछ भी बनने के पहले एक अच्छे इंसान बनना अधिक आवश्यक है l अच्छा इंसान वही होता है जो मन वचन कर्म से एक हो अर्थात वो जो सोचे वही बोले और वही करे भी l उसमें कोई भेद नही होना चाहिए l आज समाज के सामने यह सबसे बड़ी समस्या है कि मानव के मन वचन कर्म में बड़ी भिन्नता है l यह समस्याओ का मूल है l मन वचन कर्म में समानता होने से नई परेशानियां नही होंगी l एक अच्छा व्यापारी डाक्टर इंजीनियर वकील या जज अपने पास अर्जित ज्ञान व संपत्ति का सदुपयोग करेगा जिससे समाज में व्याप्त असंतुलन खत्म होगा l धन शक्ति व पद का सदुपयोग पीड़ित मानवों की सेवा के लिए होना चाहिए l इनका दुरुपयोग वर्तमान में सुख दे सकता है लेकिन भविष्य के लिए ही नुकसान का कारण बन सकता है क्योंकि विधि का यही विधान भी है जैसी करनी वैसी भरनी l जब किसी के निर्णयों से कोई पीड़ित या प्रभावित होता है तो उसका नुकसान एक न एक दिन अवश्य होता है l व्यक्ति के अच्छे या बुरे विचार कैसे बनते है ? इस बारे में अध्यात्म का मानना है कि जैसा अन्न वैसा मन …वैसा ही शरीर l सतुंलित आहार संतुलित विचार के समन्वय के जरिये ही स्वस्थ जीवन का निर्माण होता है लेकिन आज न ही आहार संतुलित है और न ही विचार…इसका मानव जीवन पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है l संतुलित आहार विचार की कमी ने मानव की आत्म शक्ति को कमजोर किया है l समाज मे रहने वाले लोग जब कमजोर होंगे तो उसका असर समाज व राष्ट्र पर भी पड़ेगा क्योंकि मनुष्य राष्ट्र की छोटी इकाई है l एक अदृश्य कोरोना वायरस लोगो के संपर्क में आते गया और पूरे विश्व के लोग उससे प्रभावित हो गए जिनकी शक्ति कमजोर रही वे अधिक प्रभावित होकर असमय ही चले गए लेकिन जिनका इम्यून सिस्टम मजबूत रहा वे संक्रमित होने के बावजूद सुरक्षित रहे l विचारो की बुराईयां भी ऐसे ही पूरे विश्व धीरे धीरे प्रभावित कर रही है l मनुष्य को वास्तविक ज्ञान की सूचनाएं उपलब्ध कराने वाली पाठ शालाये नही है l गुरु की शरण में यह कार्य बड़ी सहजता से हो सकता है l गुरु अज्ञानता की गठरी को उतारकर ज्ञान से साक्षात्कार कराता है l मानव जीवन की आत्मशक्ति को जागृत करने का मंत्र गुरु के पास होता है l अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट ब्रम्ह निष्ठालय बनोरा भी आध्यात्मिक मार्ग के जरिये आत्मशक्ति जागृत करने का केंद्र है l बनोरा पीठाधीश्वर बाबा प्रियदर्शी राम ने समाज को बताया कि मनुष्य का भाग्य अच्छा हो या बुरा उसके भरोसे जीवन जीने की बजाय वर्तमान में जीवन जीये l भाग्य को बदलने के प्रयास से वर्तमान जीवन का आंनद खोने की संभावना होती है l जीवन राख की ढेर में तब्दील हो जाये इससे पहले मानव को सद्कर्म करते रहना चाहिए l प्रकृति का न्याय सिद्धांत नर नारी अमीर गरीब सब पर समान रूप से लागू होता है l धर्म ईश्वर की आराधना का माध्यम नही बल्कि सभी धर्म धारणा व जीवन शैली है l सभी सन्तो महापुरुषों ने ईश्वर एक की शिक्षा दी है लेकिन ईश्वर एक है इस शिक्षा को समझने की बजाय सभी अपने अपने शिक्षकों की आराधना में जुट गए l जाति व धर्म आधारित सोच ने समाज को बांट दिया l बनोरा की परिधि में मौजूद अघोरा नाम परो मंन्त्र के सूत्रवाक्य ने समाज के समक्ष एक जुटता की आदर्श मिशाल पेश की है l यहाँ के भभूत मंत्र ने धर्म का भेद नही किया और नही मानव जाति की सोच को विभाजित किया l कलह क्लेश के इस कलियुग को सतयुग बनाने हेतु आपका मार्गदर्शन मानव जाति के लिए पथ प्रदर्शक की भूमिका का निर्वहन कर रहा है l मनुष्य को भौतिक स्वरूप से तो माँ अवगत कराती है लेकिन मनुष्य को अपने वास्तविक रूप से गुरु ही परिचय कराते है l गुरु बिन जीवन की नाव लक्ष्य विहीन होकर सांसारिक भवसागर में डूब जाती है l आपके आशीर्वचनों की वजह से समाज इस सच्चाई को भली भांति समझ पाया कि एक जहाज तब तक नही डूब सकता जब तक सागर का पानी छेद के जरिये उसके अंदर नही समाता वैसे ही मनुष्य जब तक अपने जीवन में बुराइयों को अपने अंदर नही आने देंता उसके अनमोल मानव जीवन का उद्देश्य नष्ट नही हो सकता l मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे में ईश्वर की खोज में भटकती मानव जाति को आपने यह समझाया कि अपने अंदर बैठे ईश्वर को पहचानो और मन्दिर मस्जिद में ईश्वर को खोजने की बजाय अपने अंदर बैठे ईश्वर से साक्षात्कार करो l इसके लिए ध्यान धारणा योग प्राणायाम की विधि के पालन का गुर भी सिखाया l अघोरेश्वर भगवान राम जी के स्थापित उद्देश्य अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट परिधि में दृष्टिगोचर हो रहे है l आपके चरण रज से यह धरा पावन हो गई l महाप्रभु हमारी आंखे आपको शरीर रूप में नही देख पा रही लेकिन आपके सूक्ष्म स्वरुप आपका आभास आपकी भाव भंगिमा , आपका ज्ञान आप जैसी चुम्बकीय शक्ति का एहसास अघोर पंथियों को आज भी बनोरा में हो रहा है। अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा अघोरपंथियो के लिये आध्यत्मिक शक्ति अर्जित करने का केंद्र बन चुका है l