राजनीतिरायगढ़

रायगढ़ – अनिर्णय, ऊहापोह और गुटबाजी के भंवरजाल में फँसी जिला भाजपा..अगर यही हाल रहा तो 2023 में ‘जहाज’ का डूबना तय

रायगढ़ – बीतें छह माह से अब रायगढ़ के राजनैतिक गलियारों में यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि आसन्न विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा की वापसी संभव नज़र नहीं आ रही हैं। जिसकी वजह स्थानीय राजनीतिक समीक्षक रायगढ़ जिला भाजपा में व्याप्त अंदरूनी अंतर्कलह और गुटबाजी को मान रहें हैं जो अब खुलकर रायगढ़ भाजपा के हर कार्यक्रमों व आंदोलनों के दौरान दिखने लगी हैं। स्थानीय समीक्षकों की मानें तो मौजूदा जिला भाजपा ढ़ाई साल पूर्व 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली शर्मनाक हार की समीक्षा व नई रणनीति को लेकर चिंतन करने के बजाय आपसी रस्साकसी और गुटबाजी में ही उलझी हुई हैं जिससे जमीनी स्तर पर भाजपा कार्यकर्ताओं व आम जनता के मन में रायगढ़ भाजपा के प्रति अविश्वास और गहराता जा रहा है और जिले में भाजपा की जड़े दिन ब दिन कमजोर होती जा रही हैं।

स्थानीय भाजपा नेतृत्व सहित तमाम दिग्गज नेतागण भी मुगालते में हैं कि मौजूदा कांग्रेस सरकार को लेकर आम जनता में भयंकर असंतोष हैं और इसी असंतोष को वे 2023 के चुनाव में भुनाकर रायगढ़ की सभी 5 सीटों पर काबिज हो जायेंगे जबकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। सोशल मंच पर सक्रियता के जरिये सत्ता में वापसी का सपना देखने वाली भाजपा इस बात से अनभिज्ञ है कि मौजूदा स्थानीय सरकार को लेकर सबसे बड़े व निर्णायक वोट बैंक कहें जाने मजदूर वर्ग और किसानों में सरकार की छवि साफ सुथरी व समर्पित छत्तीसगढ़िया सरकार की है। जबकि दूसरी ओर विपक्ष की भूमिका में रायगढ़ भाजपा जिला नेतृत्व हाईकमान अनिर्णय और उहापोह की स्थिति में है। वह फिलहाल किसी ठोस व टिकाऊ मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने में अब तक पूरी तरह से असफल रही है। अनिर्णय की स्थिति से अब जमीनी स्तर के भाजपाई पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा धीरे-धीरे घर करने लगी है जिन्हें यह उम्मीद थी कि संगठन में व्यापक स्तर में जो बदलाव प्रदेश में हुए हैं उसके बाद 2023 के चुनावों में एक बार फिर से रायगढ़ की राजनीति में भाजपा के लिए ‘अच्छे दिनों’ की शुरुआत होगी।

हालांकि भाजपा के युवा नेता ओपी चौधरी व निगम नेता प्रतिपक्ष श्रीमती पूनम दिबेश सोलंकी की जमीनी सक्रियता बढ़ी है और वे लगभग हर मुद्दे पर स्थानीय मंत्री, विधायक व निगम सरकार की घेराबंदी कर रहे हैं लेकिन बाकी दिग्गज भाजपाई नेता अभी भी चुप्पी साध रखें है राजनीतिक सूत्रों से मिली जानकारी की मानें तो इसकी मुख्य वजह गुटबाजी ही हैं। बड़े भाजपा नेताओं व उनके समर्थकों के मन में व्याप्त भ्रम का कुहासा नहीं छंट पा रहा है कि आसन्न 2023 चुनाव पार्टी किसके चेहरे पर लड़ेगी और चुनाव बाद कमान किसके हाथों में होगी..?

कमोबेश यही गुटबाजी और दुविधा रायगढ़ जिले में भी इन दिनों व्यापक स्तर पर देखने को मिल रही हैं भाजपाई कार्यकर्ताओं व नवनियुक्त पदाधिकारियों की सक्रियता के लिए यह जरुरी है कि उन्हें यह पता हो कि रायगढ़ की अगुवाई कौन करने वाला हैं और फिर वे उसके इर्द-गिर्द ही अपनी सक्रियता दिखाते हैं।
स्थानीय स्तर पर लगभग हर कार्यक्रमों व आंदोलनों के दौरान गुटबाजी की वजह से अब रायगढ़ भाजपा टुकड़ों में बंटी हुई गैंग की तरह नज़र आ रही हैं और जनता के मध्य रायगढ़ भाजपा को लेकर अविश्वास बढ़ता जा रहा है।

बात चाहें स्थानीय मीडिया की करें या फिर आम जनता की। अटकलों का दौर इसलिए भी चल रहा है क्योंकि अब उनके बीच यह धारणा बन गयी हैं कि स्थानीय जिला नेतृत्व न सिर्फ पार्टी को एकजुट करने की मामलें में पूरी तरह से असफल है बल्कि बढ़ती गुटबाजी को रोकने में भी मौजूदा जिलाध्यक्ष फिसड्डी साबित हो चुके है।

बीतें एक पखवाड़े की ही बात करें तो ऐसे 2-3 बड़े अवसर आये जब स्थानीय भाजपा टुकड़ों में बँटी हुई नजर आयी। बात चाहें नटवर स्कूल के नामकरण को लेकर रायगढ़ भाजयुमों के तत्वाधान में ज्ञापन सौंपने की हो या फिर महिला मोर्चा के सावन व तीज उत्सव कार्यक्रम के आयोजन का हो। दोनों ही मौक़े पर जो गुटबाजी देखने को मिली वो बताने के लिए काफी था कि ऑल इज नॉट वेल।

इन दो आयोजनों को लेकर स्थानीय भाजपा की मीडिया व सोशल मीडिया पर जमकर फजीहत हुई लेकिन रायगढ़ भाजपा ने उससे भी सीख नहीं लिया। इसी कड़ी में आज एक और खेमेबाजी उस वक्त देखने को मिली जब जिला भाजपा कार्यालय में भाजयुमों के तत्वाधान में रायगढ़ विधानसभा को लेकर एक बैठक आहूत की गई थी लेकिन इस बैठक में भी रायगढ़ भाजयुमों से जुड़े सभी तीन से चार प्रमुख व बड़े चेहरे नदारद दिखें। पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी की मानें तो बैठक में नदारद रहने वाले ये सभी वो पदाधिकारी हैं जो वरीयता के पैरामीटर में जिला भाजयुमों के आला पदाधिकारियों से भी ऊपर स्थान रखते है जिन्हें स्थानीय स्तर पर व्याप्त गुटबाजी व आपसी प्रतिस्पर्धा की वजह से बैठक में शामिल होने की औपचारिक सूचना तक नहीं दी गई थी जिसे लेकर बैठक के दौरान ही नगर भाजयुमों से जुड़े एक आला पदाधिकारी ने जिला भाजयुमों के अहम पद पर काबिज एक युवा नेता व जिला नेतृत्व की जमकर लानत-मलानात की और बाद में आक्रोशित होकर बीच बैठक से ही बाहर निकल गए।

रायगढ़ भाजपा से जुड़े जमीनी कार्यकर्ताओं की मानें तो वे इसके लिए सीधे तौर पर जिला नेतृत्व दोषी मानते हैं। कुछेक स्थानीय कार्यकर्ताओं ने तो अपनी नाराजगी को अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिये रखा भी है बावजूद जिला नेतृत्व इसे गंभीरता से लेने की बजाय अपने ही मुग़ालते में मस्त हैं। कुछ कार्यकर्ताओं का तो यहाँ तक भी कहना हैं कि मौजूदा जिला नेतृत्व केवल वातानुकूलित कक्षों में बैठकर इतनी ही राजनीति करना चाहते हैं कि उनकी अपनी प्रासंगिकता बनी पार्टी में बनी रहे।’ मतलब यह है कि ये नेता केवल अपने करोड़ों के उद्योग व कारोबार के ‘सुरक्षा कवच’ के तौर पर ही राजनीति करते है और उन्हें पार्टी की कोई चिन्ता नहीं है यदि होती तो अब तक जिला नेतृत्व स्थानीय स्तर पर व्याप्त गुटबाजी को लेकर कोई न कोई दो-टूक फैसला अवश्य कर लेते।

जिला भाजपा नेतृत्व के ढुलमुल रवैये को देखते हुए अब यह कहना गलत नहीं होगा कि जिला नेतृत्व को आसन्न विधानसभा चुनाव 2023 से कोई विशेष सरोकार नहीं हैं उन्हें बस अपने करोड़ों के कारोबार को प्रोटेक्शन देने की लिए एक राजनीतिक कवच के तौर पर भाजपा की राजनीति करनी है।

कुल मिलाकर कहा जाये तो रायगढ़ जिला भाजपा दिन ब दिन अनिर्णय, उहापोह और गुटबाज़ी के भंवरजाल में गहरी धँसती जा रही हैं और यदि यही हाल रहा तो 2023 के विधानसभा चुनाव में रायगढ़ भाजपा की नाव का डूबना तय है।

advertisement advertisement advertisement advertisement advertisement
Back to top button
error: Content is protected !!