रायगढ़

रायगढ़ – कोरोना के क्रूर शिकंजे में सपरिवार फँसे महाबली…फिर हिम्मत और हौसले से दी कोरोना को मात….डॉ मंदीप टुटेजा की सेवा-भावना से भावुक होकर परिवार ने उन्हें ‘मसीहा’….

कोरोना काल के दौर में दर्द व व्यथा की कहानियां ज्यादा हैं, लेकिन वाह के अफसाने भी कम नहीं हैं। ‘आह’ से ‘वाह’ तक की यह दास्तां आपके दिल को सुकून देने के साथ आपके मनोबल को भी मजबूत करेगी, क्योंकि हम इस दास्तां में आपको ऐसे कोरोना योद्धाओं से मिलवाएंगे जिन्होंने कोरोना से जंग को जीतने के लिए हमें एक नया हौसला दिया है। जी हां, जरूरी नहीं कि हर कहानी मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता जैसे महानगरों से शुरू हो। कुछ कहानियां छोटे शहरों से भी शुरू होती हैं। ऐसी ही एक दास्तां रायगढ़ के हंडी चौक स्थित एक परिवार की है। 
कोरोना से जंग जीतकर जब ये परिवार अपने नॉर्मल जिंदगी में वापस आया तो सभी बहुत खुश हुए। परिवार ने जिस हिम्मत व हौसले से इस जंग में जीत हासिल की है उसे मैंने भी झेला है इसलिए उनसे मिलने वहां मैं भी पहुंच गया। जहां मेरी मुलाकात इस परिवार के बेटे शेख आसिफ (महाबली) से हुई। मैंने उनसे जानने की कोशिश की कि कैसे परिजनों को कोरोना पॉजिटिव हुआ, किस प्रकार से इस खतरनाक वायरस से पूरे परिवार ने संघर्ष किया और इन हालातों में क्या कुछ हुआ ? आइए जानते हैं इस परिवार के बेहद कठिन दौर के संघर्षों की कहानी..

परिवार का परिचय
रायगढ़ शहर में हंडी चौक स्थित एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार निवास करता है। इस परिवार के मुखिया अनवर अली  (70 वर्ष) राबिया बी (62 वर्ष) हैं। दोनों दंपत्तियों के दो पुत्र- बहु अब्दुल अनीस – तरन्नुम बेगम व शेख आसिफ उर्फ महाबली – रुसदा आफरीन, तीन मासूम पोते पोतियां असमारा अली (5 वर्ष), मोहम्मद असलान (10 वर्ष) व माहनुर नाज (12 वर्ष) कुल 9 लोगों का खुशहाल परिवार है। परिवार में दोनों बेटे पिता का नागपुर रुई गद्दा सेंटर के नाम से दुकान है और खुशी खुशी अपना जीवन यापन करते हैं। समाज में अनवर अली काफी प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं और इस परिवार को अनवर रुई वाला परिवार के नाम से पूरा शहर जानता है। 

परिवार पर लगी कोरोना की नजर 
दिनांक 24 मार्च 2021 को घर का बड़ा बेटा अब्दुल अनीस उनकी पत्नी तरन्नुम बेगम व तीनों बच्चे असमारा अली, मोहम्मद असलान व माहनूर नाज भिलाई से रायगढ़ वापस आए। अनीस व तरन्नुम को रायगढ़ आने के बाद 29 तारीख को खाने में खुशबू व स्वाद नहीं आ रहा था तो वहीं घर के मुखिया अनवर अली को भी खांसी की समस्या हुई फिर 01 तारीख को तीनों का कोविड टेस्ट कराया गया। जहां सभी की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गयी। हैरान व परेशान घर के छोटे बेटे महाबली ने पिता एवं भैया-भाभी को तत्काल जिंदल फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती कराया। घर पर महाबली, उनकी मां एवं तीनों बच्चे रह रहे थे। अस्पताल की पूरी जिम्मेदारी महाबली के कंधों पर थी। मां घर पर खाना बनाती और बच्चों का देखभाल करती थीं। महाबली घर से हॉस्पिटल, हॉस्पिटल से दवाई दुकान व खाने पीने की चीजों से लेकर तीनों मरीजों के लिए सभी व्यवस्थाओं में दिन – रात लगे रहते थे। सुकून कहीं गायब हो चुकी थी मन में एक अलग से डर व्याप्त हो गया था।

छोटी बहू और मां भी कोरोना के चपेट में
घर की छोटी बहू रूसदा आफरीन अपनी मां जमीला खान के ईलाज हेतू रायपुर में थीं वहां उनकी भी तबीयत ठीक नहीं थी। रायपुर में रूसदा आफरीन की मां जमीला खान हार्ट का ऑपरेशन होना था इसलिए वह रायपुर में उनके साथ थी। दिनांक 01 अप्रेल को रूसदा आफरीन का कोविड टेस्ट हुआ और वे पॉजिटिव आ गई। अपने मायके में रूसदा आफरीन होम क्वॉरेंटाइन में थी लेकिन उनकी हाल ठीक नहीं थी तो पति महाबली ने 04 अप्रेल को अपने कर्मचारी रवि उर्फ राजेश चौहान को कार देकर उन्हें रायपुर से रायगढ़ लाने भेजा। सुबेरे 05 अप्रेल को रूसदा आफरीन रायगढ़ आ गयीं। रूसदा आफरीन के पॉजिटिव आने से परिवार में एक और बड़ी मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा था।
मुसीबतों के पहाड़ टूटने का आलम कम नहीं हुआ था कि रूसदा आने के बाद उनकी मां जमीला खान भी कोरोना से ग्रसित हो गयीं। चूंकि कुछ दिन पहले ही उनका हार्ट का ऑपरेशन हुआ था इस कारण कोरोना उन पर हावी हो गया और उनकी तबियत बेहद खराब हो गई। उन्हें 11 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया था और अंततः जमीला खान कोरोना से जंग हार गई। उनका इंतकाल हो गया। परिवार में मातम पसर गया था।
इस दु:ख के क्षण में एक और दुःख फिर सामने आया। 05 अप्रैल को राबिया बी ने शरीर में दर्द व बुखार की शिकायत की तो महाबली ने उनका कोरोना टेस्ट कराया जिसका रिपोर्ट पॉजिटिव आ गया। महाबली ने बड़े हिम्मत से काम लेते हुए दोस्तों की मदद एवं अपने कर्मचारियों की मदद से आनन-फानन में पत्नी व मां दोनों को फोर्टिस जिंदल हॉस्पिटल में भर्ती कराया। फोर्टिस जिंदल हॉस्पिटल के डॉ. मंदीप टुटेजा ने रूसदा आफरीन की रिपोर्ट देखकर स्वस्थ होने की आशंका जताई और संतोषप्रद जवाब देने से मना कर दिया। जिस पर महाबली काफी दुःखी व परेशान हो गए थे। परिवार के पांच सदस्य कोरोना से पीड़ित थे और अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे और उन्हें बचाने के लिए महाबली जद्दोजहद कर रहा था।

12 साल की मासूम माहनुर नाज ने दो बच्चों की जिम्मेदारी सँभाल पेश की मिसाल
परिवार के पांचों सदस्यों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उनके इलाज की समुचित व्यवस्था एवं तीनों बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी महाबली के कंधों पर आन पड़ी थी। इस जिम्मेदारी का वहन करते हुए महाबली लगातार कोरोना से अपनों को बचाने दिन- रात एक कर रहे थे। हॉस्पिटल में महाबली पूरी तरह व्यस्त हो गए थे। डॉ. मंदीप टुटेजा से लगातार संपर्क बनाकर अपने परिजनों के लिए दवाइयों एवं अन्य चीजों की व्यवस्था में लगे हुए थे। तीनों बच्चे असमारा अली, मोहम्मद असलान व माहनूर नाज घर पर ही थे और पूरा परिवार हॉस्पिटल में था। इस दौरान 12 साल की माहनूर नाज ने अपने से छोटे दोनों भाई -बहन असमारा व मोहम्मद असलान का एक मां की तरह देखभाल किया।
दोनों बच्चों के खाने-पीने, उन्हें खिलाने, उनके साथ खेलने, उन्हें कपड़ा पहनाने से लेकर हर वो काम किया जो छोटे बच्चों के लिये जरूरी होता है। जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं उस उम्र में यह बच्ची बच्चे खिला रही थी। यह देखकर दिल बैठ जाता था। महाबली को अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था और हो भी क्यों ना, क्योंकि इस विकट परिस्थिति में पिता का जो साथ इतनी कम उम्र में बेटी ने दिया था। 12 वर्ष की उम्र में बच्चों को समझ नहीं होती कि जिम्मेदारी क्या होती है लेकिन इस बच्ची ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी को अकेले संभाल लिया जो अपने आप में एक मिसाल है। इसी बीच अस्पताल में भर्ती पिता, भाई व भाभी कोरोना को मात देकर घर वापस आये और सुरक्षा के दृष्टिकोण से होम क्वॉरेंटाइन में रहने लगे। परिवार में थोड़ी सी खुशियां लौटी लेकिन राबिया बी और रूसदा आफरीन अभी भी हॉस्पिटल में कोरोना से जंग लड़ रहे थे।

अनवर अली 20 दिनों के भीतर फिर हुए कोरोना के शिकार
अनवर अली ठीक हो कर घर आ गए थे और होम क्वॉरेंटाइन थे लेकिन 11 तारीख को उन्होंने महाबली से खांसी की शिकायत की तो उनका ऑक्सीजन लेवल नापा गया, जिसमें ऑक्सीजन लेवल 86 आया। परिजनों के माथे पर चिंता के बादल फिर छा गए थे। उन्हें जिंदल हॉस्पिटल ले जाने की तैयारियां की जा रही थी लेकिन हॉस्पिटल में बेड उपलब्ध नहीं था। उनका ऑक्सीजन लेवल कम था इसलिए घर पर रखना रिस्क था। हॉस्पिटल में बेड की खोज जारी थी। दोस्तों की मदद से उन्हें अपेक्स हॉस्पिटल ले जाया गया।
वहां इनका सीटी स्कोर 13 , सीआरपी 90 व डी डायमर हाई आया। मरीज की स्थिति देखकर अपेक्स हॉस्पिटल प्रबन्धन ने एडमिट करने से मना कर दिया। परिवार वाले परेशान हो गए। महाबली व उनके दोस्तों ने मिलकर शहर सभी हॉस्पिटल में फोन घुमाना चालू कर दिया लेकिन सभी जगह निराशा ही हाथ लगी। थक हार कर महाबली रोते हुए पिता को लेकर घर वापस जाने लगे थे कि तभी अकस्मात अपेक्स हॉस्पिटल में रोशन पंडा निवासी गढ़ुउमरिया से मुलाकात हो गई। महाबली को हॉस्पिटल में देख रोशन ने उनसे पूछा कि ‘क्या हो गया यहां कैसे?’ तो महाबली ने मायूस मन से अपनी आपबीती बताई। पूरी बातसुनते ही रोशन ने राजप्रिय हॉस्पिटल में मैनेजिंग डायरेक्ट डॉक्टर राजकृष्ण शर्मा से बात कर पूरी डिटेल्स उन्हें बताई और मरीज को हॉस्पिटल में एडमिट करने का निवेदन किया। डॉक्टर राजकृष्ण शर्मा ने रोशन के निवेदन को स्वीकार करते हुए अनवर अली को तत्काल हॉस्पिटल में एडमिट किया। जहां उनका इलाज शुरू किया गया।
राजप्रिय हॉस्पिटल में ही डाक्टर मंदीप टुटेजा की मुलाकात महाबली से हुई तो उन्होंने उनसे पूछा कि ‘हॉस्पिटल में कैसे आए हो ?’ तो महाबली ने पिताजी के पोस्ट कोविड की जानकारी देते हुए कहा कि  ‘पिताजी जिंदल हॉस्पिटल से ठीक हो कर आने के बाद अपने सेहत में ध्यान नहीं दे रहे थे। परिवार वाले परेशान ना हो ये सोचकर अपने खाने-पीने में उन्होंने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। आज कोरोना से दुबारा ग्रसित हो गए’ पोस्ट कोविड की बात सुनकर डॉक्टर टुटेजा आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने कहां की ‛70 साल की उम्र में इतनी जल्दी दोबारा कोरोना से ग्रसित होना खतरे से खाली नहीं है और इनके स्वस्थ होने का प्रतिशत नहीं के समान है। ईश्वर से आप लोग प्रार्थना करें।’
70 साल की उम्र में कोरोना काल के समय महाबली  हैरान व परेशान थे। रेमडेसीविर इंजेक्शन की मारामारी से आप सभी वाकिफ हैं। उस वक्त रेमडेसीविर इंजेक्शन पूरे शहर में कहीं नहीं मिल रहा था। महाबली दिन-रात इस इंजेक्शन के लिए इधर से उधर भटक रहे थे। महाबली ने अपने दोस्तों से बातचीत किया और उनके सहयोग से इंजेक्शन उपलब्ध हुआ। रेमडेसीविर इंजेक्शन उपलब्ध कराने में महाबली के मित्र प्रशांत ठाकुर, कमलेश पंजाबी, तुषार नामदेव व अंकुर शर्मा ने उनकी मदद की।
अनवर अली को इलाज के दौरान 12 रेमडेसीवीर के अलावा अन्य एंटी बैक्टीरिया इंजेक्शन मिलाकर लगभग 40 इंजेक्शन लगे हैं और साथ ही एवं हाई डोज दवाइयां उन्हें लगातार दी गई। 70 बरस की उम्र में इतने हाइ डोज दवाइयों को झेलने के लिए शरीर में ताकत के साथ-साथ उच्च मनोबल, दृण इच्छाशक्ति, हिम्मत, हौसले व जज्बे का होना बहुत जरूरी होता है और अनवर अली में यह कूट-कूट कर भरा था। इसी वजह से उन्होंने कोरोना से लड़ा और डॉक्टरों के दी गई दवाइयों ने असर दिखाना शुरू कर दिया। 

डॉ. मंदीप सिंह टुटेजा बनकर आये मसीहा


जिंदल फोर्टिस हॉस्पिटल में परिवार के पांचों सदस्यों का इलाज रायगढ़ जिले के प्रसिद्ध चेस्ट फिजीशियन डॉ मंदीप टुटेजा कोरोना काल में मरीजों के इलाज के लिए दिन- रात एक कर रहे थे। उनकी सेवाभाव देखकर पूरे जिले में उन्हें बेस्ट कोरोना वारियर्स का दर्जा देने के साथ-साथ मसीहा का भी दर्जा उन्हें लोग दे रहे थे। अनवर रुई वाला परिवार के पांचों सदस्यों के लिये भी डॉ. मंदीप टुटेजा मसीहा बनकर आये। जिंदल फोर्टिस हॉस्पिटल में उन्होंने राबिया बी, अनवर अली, अब्दुल अनीस, तरन्नुम बेगम व रूसदा आफरीन को अपने पांव में खड़े कर घर वापस भेजा था। 
आपको बता दें कि रूसदा आफरीन हॉस्पिटल में काफी गंभीर अवस्था में आ चुकी थीं। डॉक्टर टूटेजा ने महाबली को वास्तविक स्थिति की जानकारी देते हुए कहा कि ‘उनकी हालत गंभीर है आप लोग इन्हें किसी अच्छे सुविधा आयुक्त हॉस्पिटल में एडमिट करें।’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‛इस हालत में बाहर ले जाना भी ठीक नहीं है।’ महाबली के लिए मरता क्या न करता की स्थिति निर्मित हो गई थी। उसने डॉक्टर से निवेदन किया कि जैसे भी हो, जो भी हो आप इनका इलाज करें। फिर डॉक्टर टुटेजा ने अपनी मेहनत और शिद्दत से खूब प्रयास किया और आफरीन को उनके पांव में खड़ा कर दिया।

पूरे परिवार के लोग जब स्वस्थ होकर घर आ गए तो महाबली की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने डॉक्टर साहब को धन्यवाद ज्ञापित किया। महाबली के मन से डॉक्टर टुटेजा के लिए जो दुआएं निकल रही थी वो अनमोल थीं। व्हाट्सएप के माध्यम से डाक्टर टुटेजा को महाबली ने लिखा ‘डॉक्टर साहब आप भगवान तो नहीं है लेकिन मेरे लिए भगवान से कम भी नहीं है आपका धन्यवाद’। इस परिवार के लिए या यूं कहें कि जिले के जितने भी कोविड मरीज स्वस्थ हुए हैं जिनका इलाज डाक्टर टुटेजा ने किया है उनके लिए वे किसी मसीहा से कम नहीं हैं।

मुसीबत का पहाड़ फिर टूटा महाबली आए पॉजिटिव
हॉस्पिटल में भर्ती अनवर अली की देखभाल करते हुए महाबली बार-बार हॉस्पिटल से घर एवं दवाई दुकानों के चक्कर काट रहे थे और इस वजह से वह भी कोरोना से इनफेक्ट हो गए। हॉस्पिटल में पिता भर्ती थे और महाबली घर में होम क्वॉरेंटाइन पर थे। पूरा परिवार इधर-उधर बिखरा हुआ पड़ा था सभी लोग टेंशन में थे और पिताजी की हालत किस प्रकार की उसे देखकर सभी के मन में एक अनहोनी की आशंका जन्म ले रही थी। ऊपर से परिवार की देखभाल करने वाला महाबली भी अब कोविड पॉजिटिव आ गया तो परिवार की मुसीबतें और बढ़ गई।

दीदी जीजा ने दिया साथ तो वहीं दोस्त बने संकटमोचन
पूरे परिवार को संभालने वाला महाबली अब खुद को लाचार महसूस करने लगा था और अपने दु:ख को उसने दोस्तों के सामने जाहिर किया। महाबली का दु:ख देखकर मित्र अंकुर शर्मा, गोलू शर्मा, राजीव गुप्ता, रोबिन चावला, पीयूष मित्तल, कमलेश पंजाबी, निटू सारस्वत, बड़े भाई बब्बल सारस्वत, तुषार नामदेव, प्रशान्त ठाकुर, तुषार नामदेव, अंकित पटवा, रोशन पंडा ने साथ दिया। दु:ख के समय साथ देने में कर्मचारी भी पीछे नहीं हटे। हॉस्पिटल में खाना लाने ले जाने एवं अन्य जिम्मेदारियों का निर्वहन रवि उर्फ राजेश चौहान ने बखूबी निभाया। बुधराम बंजारे व अजहर अली ने भी निडर होकर बखूबी साथ दिया। 
पिता अनवर अली राजप्रिय हॉस्पिटल में कोरोना से लड़ रहे थे। यह देख महाबली के जीजा वाहिद अली ने हॉस्पिटल की जिम्मेदारी संभाली और परिवार को संभालने का प्रयास किया तो वहीं दीदी परवीन बेगम ने खाने-पीने की पूरी व्यवस्था पिता एवं परिजनों के लिए किया। इसी बीच हॉस्पिटल में एडमिट पिता अनवर अली ने कोरोना को शिकस्त दिया। 20 दिनों में दो बार कोरोना से अनवर अली ने जंग लड़ा और जीत कर घर वापस आ गए। परिवार में सभी ने सुकून की सांस ली। मजबूत इछाशक्ति घरेलू उपचार और परिवार के लोगों का साथ मिला तो 70 वर्षीय बुजुर्ग ने कोरोना को मात दे दिया। आज जब इस संक्रमण से इस उम्र के लोगों को अधिक खतरा है तब यह कोरोना से जंग जीत समाज के सामने एक मिसाल बने हुए हैं। अपने इस जंग को जीतने में वह परिवार के लोगों के साथ को महत्वपूर्ण बता रहे हैं। कोरोना से जीतकर परिवार के 5 सदस्य वापस तो आ गए थे लेकिन शरीर में आए दिन कुछ न कुछ बीमारी शुरू होने लगी थी।
महाबली के एक मित्र शानू बेरीवाल निवासी पंचवटी कॉलोनी रायगढ़ इन्होंने शुरू से लेकर परिजनों के स्वस्थ होने तक हर प्रकार से महाबली की मदद की है। उनके चेहरे पर दोस्त के परिवार के दु:ख को बांटने की ललक थी और आर्थिक एवं प्रत्यक्ष रूप से शानू बेरीवाल ने हरसंभव महाबली की सहायता करने में विश्वास रखा।

परिवार की धुरी महाबली
इस पूरे दास्तां में एक व्यक्ति ऐसा रहा ‘महाबली’ जो सबका केंद्र बिंदु रहा। जिसने अपनी हर सांस में अपने परिजनों की सुरक्षा की कामना की और उन्हें नवजीवन देने के लिए दिन-रात एक किया है। कोविड के खौफ में मासूम बच्चों की चिंता, 70 साल के पिता की कोविड से गम्भीर अवस्था से बचाने, अपनी मां, भाभी-भैया व पत्नी को कोविड से ठीक करने की जुगत में हजारों परेशानियों का सामना हर रूप में करता रहा एक पति, एक भाई, एक पिता, एक पुत्र जो घुट – घुट कर हजारों बार टूटा है। ऊपर से लॉक डाऊन ने मुसीबत भरे जख्म पर नमक डालने का काम किया। जरूरत की चीजों के लिए दुकान बंद था। अस्पताल से घर, दवाई दुकानों के चक्कर, रेमडेसिवीर इंजेक्शन की किल्लत के बीच इसका अरेंजमेंट, बीमार पड़े परिजनों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था, दवाइयों की व्यवस्था में हर तरफ से घिरा ‘महाबली’ अपनों के जिंदगी के लिए कोरोना से खूब लड़ा। उसने अपने परिजनों को बचाने के लिए वो हर मुकम्मल कोशिश किया जो वो कर सकता था।
आखिरकार वह भी तो था मिट्टी का बना हुआ एक इंसान.. परिजनों की देखरेख में अस्पतालों में दौड़ भाग कर रहे इस इंसान को भी कोरोना वायरस ने अपने चपेट में ले लिया। परिवार को जीवन देने के लिए प्रयासरत महाबली अब खुद अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष करने लगा। दु:ख के गहरे बादल और काले हो गए। चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा। मोबाइल के माध्यम से महाबली ने अपने पूरे परिवार को हिम्मत और हौसला देते हुए उनमें ऊर्जा का संचार करता रहा और खुद भी बड़े हिम्मत से कोरोना से लड़ता रहा। इस विकट परिस्थिति के दौर में दोस्तों ने खूब दोस्ती निभाई।आखिरकार पूरे परिवार की मेहनत रंग लाई। इस कठिन मुसीबत से पूरे परिवार ने अपने जज्बे, हिम्मत व हौसले से कोरोना को पटखनी दे ही दिया। दो महीने के बेहद कठिन दिनों में दुर्भर जिंदगी को जीकर इस परिवार के प्रत्येक सदस्य ने शहर में हौसले व हिम्मत की मिसाल पेश की है। अनवर रुई वाला परिवार के सभी सदस्यों ने कोरोना योद्धा बनकर कोरोना को हराया लेकिन इन सबसे अलग एक ऐसा व्यक्ति जिसे लोग महाबली के नाम से शहर में जानते हैं। उनके संघर्षों को देखते हुए यदि महाबली को ‘सुपर कोरोना वारियर्स’ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
महाबली को कोरोना वायरस से मिले जख्म दूसरों के तकलीफ का भी एहसास करा रहे थे इसलिए महाबली दूसरों की मदद करने के लिए इन हालातों में भी सदैव तत्पर रहे थे। व्यक्तिगत रूप से इन्हें मैं जानता हूं की महाबली भावुक व सहयोगात्मक प्रवृत्ति के सुलझे हुए व्यक्ति हैं। जरूरत के वक्त हमेशा दूसरों की मदद के लिए एक पांव पर खड़े रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान भी इन्होंने अपनी क्षमता अनुसार लोगों की मदद करना जारी रखा था और आज भी कोई सहयोग के लिए आता है या इनकी जानकारी में कोई बात आती है तो खुले दिल से उनका सहयोग करते हैं। कोविड से ग्रसित होने के दौरान व ठीक होने के बाद भी महाबली ने दर्जनों लोगों की आर्थिक रूप से एवं अप्रत्यक्ष रूप से मदद की है। महाबली ने अपने नाम को अपने कर्मों से सार्थक किया है। पूरे परिवार को बचाने वाला कोरोना योद्धा महाबली पूरे जिलेवासियों के लिए एक मिसाल बनकर सामने आया है। 

लेख : विकास पाण्डेय

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