
रायगढ़ – तीन दशक पूर्व जहाँ भाजपा खड़ी थी आज 15 साल भाजपा की सत्ता के बाद भाजपा फिर से वही खड़ी नजर आ रही है। रोशन-विजय के सम्मिलित प्रयासो की वजह से काँग्रेस के इस अभेद किले में सेंधमारी हो पाई। भाजपा रोशन विजय की जोड़ी से परे नही थी कोमोबेश आज भी भाजपा की यही स्थिति है। आकस्मिक दुर्घटना में रोशनलाल जी दिवंगत हो गए। विजय अग्रवाल निर्दलीय चुनाव लड़ने की वजह से भाजपा से बाहर है। भाजपा की स्थिति बिन पतवार के नाव जैसी हो गई है। विधान सभा चुनाव में हारने व रोशन लाल के निधन के बाद भाजपा में गुटीय लड़ाई चरम सीमा पर आ गई है।

पार्टी के शीर्ष नेताओ से गुटबाजी नही छिपी लेकिन विकल्प नही होने के कारण शीर्ष नेता भी मौन धारण किये बैठे है। भाजपा केवल सोशल मीडिया में सक्रिय नजर आ रही है। तोल मोल के बोल की व्यापारिक मानसिकता भाजपा में हावी होते नज़र रही है। बतौर विपक्ष भाजपा में आक्रमकता के अभाव की वजह से काँग्रेस की पौ-बारह है। भाजपा को कु-प्रबंधन की स्थिति से बचाने अब पूर्व विधायक विजय अग्रवाल की वापसी की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

विजय अग्रवाल 1992 का पहला विधान सभा चुनाव हारे थे उसके बाद 2003 में दूसरा चुनाव स्वास्थ्य मंत्री के के गुप्ता को हरा कर विजयी हुए। 2008 में उंन्हे हार का सामना करना पड़ा। 2013 में उंन्हे टिकट नही मिली और पार्टी के निर्णय का सम्मान किया। 2018 के दौरान पार्टी से टिकट नही मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा उनकी टीवी ने भाजपा विधायक रोशन लाल की हार तो काँग्रेस विधायक प्रकाश नॉयक की जीत का समाचार सुनाया। विजय अग्रवाल की टीवी को 40 हजार मत मिले…हर बूथ में वोट पाकर विजय अग्रवाल जीत नही पाए लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि बिना पार्टी के भी उनका दमखम मौजूद है। उनका विधायकी कार्यकाल विकास के नजरिये से रायगढ के लिए स्वर्णिम कार्यकाल माना जाता है। शहर के मध्य ओवर ब्रिज को लेकर तोड़ फोड़ जनता की नाराजगी का तात्कालिक कारण रही। विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट नही मिलने से नाराज विजय अग्रवाल के तेवर भी नरम पड़े। पार्टी से बाहर रहने के बावजूद लोकसभा चुनाव व नगरीय निकाय चुनाव में उनकी साकरत्मक भूमिका का पार्टी को लाभ मिला। कुछ छूटभैय्ये नेताओ को छोड़ दिया जाए तो जिले स्तर के सभी वरिष्ठ नेता भी चाहते है कि विजय अग्रवाल की वापसी हो जाये।
बहरहाल.. जिले में भाजपा को अनुभवी नेता की कमी महसूस हो रही है समय रहते विजय अग्रवाल की वापसी से पूरी हो सकती है। विजय अग्रवाल की वापसी से भाजपा अगला विधान सभा चुनाव जीतने का स्वप्न भी पूरा कर सकती है। भाजपा को विजय का लक्ष्य हासिल करने के पहले विजय की वापसी का मार्ग खोलना होगा अन्यथा विजय अग्रवाल की गैर मौजूदगी में पार्टी के लिए शून्यता को भर पाना नामुमकिन ही होगा।