
सियासी उलटफेर का गढ़ कहे जाने वाले हमारे भारत देश के विभिन्न प्रांतों में इन दिनों एक अलग तरह की सियासी हलचल देखने को मिल रही है। पार्टी चाहे जो भी हो, सभी राजनीतिक पार्टियों में एक जैसा ही बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात में अपने मुख्यमंत्रियों को बदलकर इन राज्यों में चुनावों की तैयारियों पर फोकस करना शुरू कर दिया है। जल्द ही छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश व मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना जताई जा रही है।
इसी बीच कांग्रेस पार्टी के अंदर भी मुख्यमंत्रियों को बदले जाने की कवायद शुरू हो गई है। पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर कांग्रेस आलाकमान ने भी अपने इरादे साफ कर दिये हैं। आलाकमान अभी से ही आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गया है। अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे संकेत मिले हैं कि कांग्रेस के शीर्षस्थ वरिष्ठ नेता भूपेश बघेल को हटाने को लेकर अपनी राय दे चुके हैं। हालांकि खुद भूपेश बघेल अब भी इस मुगालते से बाहर नहीं निकल पाये हैं कि वो अगले विधानसभा तक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहेंगे।
देखा जाये तो छत्तीसगढ़ की राजनीति अन्य राज्यों की तुलना में अलग है। यहां वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद खुद कांग्रेस आलाकमान ने सरकार बनाते समय मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर यह निर्णय़ लिया था कि ढाई साल भूपेश बघेल और ढाई साल टीएस सिंहदेव को सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी जायेगी। लेकिन ढाई साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी भूपेश बघेल इस पद से हटने को तैयार नहीं हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो विधानसभा चुनाव के दौरान टीएस सिंहदेव कांग्रेस पार्टी का प्रमुख चेहरा थे। उनके ही नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव का मुखपत्र जारी किया था। लेकिन आज वहीं टीएस सिंहदेव, भूपेश बघेल की वजह से उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।
बीते ढाई साल में भूपेश बघेल सरकार के दौरान राज्य में भ्रष्टाचार, घूसखोरी, चोरी, डकैती, छेड़छाड़, मर्डर, मीडिया पर अंकुश जैसी कई घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इतना ही नहीं राज्य में भू-माफियाओं का बोलबाला हो गया है। यहीं नहीं एनसीआरबी के मुताबिक अब तो संस्कारधानी प्रदेश छत्तीसगढ़ अपराधिक वारदातों व उसकी फ्रिक्वेंसी के मामलें में बदनाम रहें राज्य बिहार से भी आगे निकल गया है और बघेल सरकार इन सब पर रोक लगाने में पूरी तरह नाकामयाब रही है। राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो राज्य की इस दुर्दशा के लिए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया भी बराबर के भागीदार हैं। जबकि भूपेश बघेल की इस नाकामयाबी से कांग्रेस शीर्षस्थ नेता खुद भी अच्छी तरह से परिचित हैं। बावजूद उसके कांग्रेस हाईकमान भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने को लेकर निर्णय नहीं ले पा रही है। कांग्रेस आलाकमान के इस निर्णय़ से न सिर्फ स्थानीय नेताओं में असंतोष है, बल्कि राज्य की जनता में भी गहरा असंतोष देखने को मिल रहा है। अगर ऐसा ही चला तो निश्चित ही अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का सत्ता वापसी का ख्वाब, एक सपना बनकर ही रह जायेगा। इसीलिये कांग्रेस हाईकमान को इस दिशा में दोबारा से चिंतन करने की आवश्यकता है वरन कहीं ऐसा न हो कि 2023 के चुनाव में दूसरी पारी का ख़्वाब महज एक ख्वाब बनकर ही रह जाये और कांग्रेस को बड़ी पराजय का सामना करना पड़े।