रायगढ़ तहसील कार्यालय एक बार फिर विवादों में.. पीड़ितों का कहना कि तहसीलदार ने न्यायालय के आदेश की अवहेलना की… विवादित भूमि की रजिस्ट्री और बिक्री भी कर दी और दावा आपत्ति के लिए वक्त भी नही दिया…. पीड़ित पक्ष हाईकोर्ट जाने की तैयारी में : सूत्र , तत्कालीन तहसीलदार ने कहा कि सबकुछ नियमानुसार हुआ है वे हार गए है तो शिकायत कर रहे है…

रायगढ़। सरकारी जमीन पर अतिक्रमण और भू माफियाओं की मनमानी के कारण विवादों में रहने वाला रायगढ़ राजस्व विभाग एक बार फिर से चर्चा में है और अगर पीड़ितों की मानें तो इस बार तो विभाग ने सिविल कोर्ट के आदेश की भी धज्जी उड़ाते हुए अतिक्रमणकारी के नाम पर केलो विहार समिति की सरकारी जमीन चढ़ा दी है। मामला किसी की निजी भूमि का नहीं बल्कि भूतपूर्व कलेक्टर द्वारा शासकीय कर्मचारी आवास के लिए आवंटित जमीन का है।
दरअसल..14 मई 1991 को तत्कालीन कलेक्टर ने केलो विहार शासकीय कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था को 25 एकड़ जमीन आवंटित की थी। बेलादुला की खनं 7 की 21.16 एकड़ और छोटे अतरमुड़ा में खनं 2 की 2.42 एकड़ व खनं 3 की 1.42 एकड़ कुल 25 एकड़ भूमि संस्था को मिली थी। इस पर ड्राइंग डिजाइन कर प्लॉट आवंटित किए गए थे। छोटे अतरमुड़ा की भूमि खनं 2 व 3 पर अवैध कब्जा किया गया था। 33 लोगों को जमीन आवंटित हुई थी। लेकिन इस पर बहादुर सिंह ने कब्जा कर लिया था। इस पर व्यवहार न्यायालय में वाद भी दायर किया गया था जिसमें बहादुर सिंह ने जमीन को अपनी बताया था। सिविल कोर्ट रायगढ़ ने 25 सितंबर 23 को उक्त प्रकरण में बहादुर सिंह के दावे को खारिज कर दिया था। इसके बाद केलो विहार के 33 आवंटियों को प्लॉट मिलने की उम्मीद जगी लेकिन तहसीलदार ने इसे अनदेखा करते हुए और सिविल न्यायालय के आदेश के विरुद्ध जाकर खनं 3 की भूमि 2.46 एकड़ बहादुर सिंह के नाम पर कर दी। केलो विहार समिति ने फरवरी 2024 में सिविल कोर्ट के आदेश पर क्रियान्वयन करने के लिए कलेक्टर को आवेदन देकर खसरा नंबर 2 व 3 का सीमांकन करवाकर पजेशन दिलाने की गुहार लगाई थी। अब उनका कहना है कि सिविल कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करते हुए आदेश किया गया। इसकी शिकायत वे उच्च स्तर पर करने की बात कह रहे हैं।
ऐसे प्रकरणों को देखकर लगता है कि जिले में राजस्व विभाग में नियम-कानून कोई मायने नहीं रखता। अगर अफसर से सेटिंग अच्छी हो गई तो आप दूसरे की जमीन पर अपना महल खड़ा कर सकते हैं। किसी को आवंटित जमीन को कोई दूसरा अपना बताकर किसी तीसरे को बेच लेता है।
रायगढ़ में भूमाफिया और दबंगों की ही सुनवाई
तहसीलदार ने बीते 14 जून को आदेश दिया कि आवेदित भूमि को 1950-51 में बिना किसी आदेश के नजूल दर्ज कर दिया गया। जिस आदेश में प्रथम व्यवहार न्यायधीश ने बहादुर सिंह का वाद खारिज किया था, उसी आदेश को आधार मानकर तहसीलदार ने खनं 3 रकबा 2.46 एकड़ राजस्व अभिलेखों में बहादुर सिंह के नाम दर्ज करने का आदेश दे दिया। अब वो 33 प्लॉट आवंटी दोनों आदेश लेकर घूम रहे हैं। मतलब जिले में राजस्व विभाग की गड़बड़ी के कारण केवल भूमाफिया और दबंगों की ही सुनवाई हो रही है और वर्तमान में रायगढ़ में किसी आम आदमी की बात सुनी ही नहीं जा रही है। राजस्व विभाग केवल सेठों, भूमाफियाओं, दबंगों की ही सुन रहा है।
जमीन भी बेच दी दावा आपत्ति के लिए भी वक्त नहीं
सिविल कोर्ट की अनदेखी कर इस विवादित मामले में जितनी तेजी से तहसीलदार ने कार्यवाही की, उतनी तेजी अगर आम जन के प्रकरणों में दिखे तो सीएम साय के जनदर्शन में लगने वाली भीड़ भी कम हो सकती है। अपने 14 जून के आदेश पर तहसीलदार लोमस मिरी ने रिकॉर्ड दुरुस्त करवा दिया। इस बीच बहादुर सिंह के देहांत के बाद आठ वारिसानों का नाम दर्ज हुआ। अब यह जमीन 30 अगस्त 2024 को मनीष देवांगन को बेच दी गई है। राजस्व विभाग की तेजी देखिए कि रजिस्ट्री के बाद नामांतरण के लिए 2 सितंबर को दावा-आपत्ति नोटिस जारी किया गया है। 9 सितंबर तक अंतिम तिथि है। इस बीच छुट्टियां हैं, इसलिए जानबूझकर नोटिस दिया गया है। व्यवहार न्यायालय से आदेश के बाद सीमांकन तो नहीं हुआ, लेकिन जमीन जरूर बिक गई।
तत्कालीन तहसीलदार ने कहा कि सबकुछ नियमानुसार हुआ है
वही इस मामले को लेकर जब हमारे संवाददाता ने तत्कालीन रायगढ़ तहसीलदार लोमस मिरी जो वर्तमान में खरसिया में पदस्थ से उनका पक्ष जानना चाहा तो उनका दो टूक कहना है कि इस मामले में सबकुछ नियमानुसार ही किया गया है और वे लोग कोर्ट में हार गए है तो अब शिकायत कर रहे है। वही इस पूरे मामले में हमें अब जानकारी मिल रही है कि पीड़ित पक्ष हाईकोर्ट के शरण में जाने की तैयारी में है।
खबर स्त्रोत: दैनिक जनकर्म अखबार